अगर इश्क़ का यही दस्तूर है जी

अगर इश्क़ का यही दस्तूर है जी 
मुझे क़त्ल होना भी मन्ज़ूर है जी 

अजन्ता की मूरत लगे यार मुझको
बचाये खुदा चश्मे-बददूर है जी 

तसव्वुर में बांधे उसे यार कैसे
पहुँच से मिरी वो बहुत दूर है जी

शुरू सब उसी से, फ़ना सब उसी पे
ज़मीं की धनक है, अजब नूर है जी

ज़माना उसे क्यों गुनहगार कहता
'महावीर' आशिक़ तो मजबूर है जी 

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7 Comments

N.ksahu0007@writer

14-Nov-2021 02:02 AM

उम्दा पेशकश

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Seema Priyadarshini sahay

13-Nov-2021 05:36 PM

बहुत खूबसूरत

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Swati chourasia

12-Nov-2021 08:05 PM

Very nice 👌

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